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Dainik Vishwamitra

शुक्रवार १० मई २०२४

पाकिस्तानी आतंकवादी अब भारतीय सेना में दे रहा है अपनी सेवा




भुवनेश्वर। दुनिया में सबसे ताकतवर चीज प्यार है, जिसके बलबूते कई असंभव चीज को संभव बनाया जा सकता है। प्यार और इंसानियत में इतनी ताकत है कि यह दुश्मन को दोस्त में भी बदल सकता है। कश्मीर में आतंकवाद का सामना कर रहे सेना के वरिष्ठ अधिकारी ने इस पर अपने अनुभव साझा किए हैं।
यहां बात की जा रही है हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी (हूजी) से कभी जुड़े हुए एक आतंकवादी की, जो अब भारतीय सेना में हवलदार के पद पर कार्यरत हैं। पाकिस्तान से आतंकवाद पर प्रशिक्षिण प्राप्त किए हुए भारतीय सेना के इस वर्तमान कर्मी को दिसंबर 2000 में आतंकवादी गतिविधियों के लिए अनंतनाग जिले के एक गांव से पकड़ा गया था। रविवार को एसओए द्वारा आयोजित टेडएक्स के एक कार्यक्रम में मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) यशपाल मोर ने इस किस्से को बयां किया।
अनंतनाग जिले में तैनात राष्ट्रीय राइफल्स यूनिट के कंपनी कमांडर मेजर जनरल यशपाल मोर ने कहा,“पकड़े जाने के बाद उसने सोचा होगा कि उसे मार दिया जाएगा, लेकिन इसके विपरीत हमने उसके घायल पैरों का इलाज किया, उसकी भावनाओं को समझने की कोशिश की और उसे सामान्य जिंदगी में वापस लाने की कोशिश की।”
मेजर जनरल ने कहा कि किश्तवाड़ से ताल्लुक रखने वाले आतंकवादी को पहले घोड़े पर बिठाकर उसके ठिकाने पर ले जाया गया था, जो कि पीर पंजाल पर्वतमाला पर सिंथन दर्रे के एक सुदूर गांव में स्थित है।
श्री यशपाल ने कहा कि इसके बाद उसे पूछताछ के लिए श्रीनगर के एक जेल में ले जाया गया, लेकिन फिर वापस अनंतनाग ले आया गया ताकि उससे मिली जानकारी के आधार पर सेना अभियानों का संचालन कर सके।
बतौर मेजर जनरल यशपाल मोर,“आतंकवादी सामान्य जिंदगी में काफी धीमी गति से लौटते हैं इसलिए हर रोज उससे एक बार मिलने की मैंने अपनी दिनचर्या बना ली। शुरुआत में हमारे बीच कुछ झिझक रही, लेकिन बाद में हम सहज हुए, तो मुझे पता चला कि वह एक सुलझे हुए परिवार से आता है और उसने दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई भी कर रखी है।”
उस युवक ने मेजर जनरल को अपनी जिंदगी की पूरी कहानी सुनाई कि कैसे वह हूजी में शामिल हुआ और कैसे पाकिस्तान गया, किस तरह से उसे वहां दो साल तक आतंकवादी बनने की ट्रेनिंग मिलती रही वगैरह।
साल 1993-94 में मोजाम्बिक में संयुक्त राष्ट्र शांति सेना का हिस्सा रहे और सैन्य पदक और प्रशस्ति पत्र से सम्मानित हुए मेजर जनरल यशपाल मोर ने कहा,“धीरे-धीरे हमारे बीच एक रिश्ता पनपने लगा, हम ज्यादा समय साथ मेें बिताने लगे। उसे अपने माता-पिता की फिक्र होने लगी थी क्योंकि शायद उन्हें उस वक्त लग रहा होगा कि उनका बेटा मर गया है।”
उन्होंने कहा, “मैंने उससे कहा कि वह अपने घर पर पत्र लिखकर बताए कि वह ठीक है और सेना के साथ है। इसके बाद उसके पिता किश्तवाड़ से सफर कर अनंतनाग में सेना के कैंप में अपने बेटे से मिलने आए। जिस बेटे को उन लोगों ने मरा हुआ समझ लिया था, उससे मिलकर उनकी जो खुशी थी, वह एक यादगार लम्हा है।”
मेजर जनरल ने कहा, उसकी सेहत में कुछ सुधार आया, तो उसने रसोई में काम शुरू करने को कहा गया। इसके अलावा भी उससे काफी मदद मिलती थी क्योंकि वह जवानों को कई तरह के सुझाव देता था कि कैसे जंगल में ऑपरेशन का संचालन करना है, दक्षिण कश्मीर के ऊंचे पर्वतीय इलाकों में कैसे काम करना है इत्यादि।
श्री मोर ने कहा,“एक दिन उसने मुझे कहा कि भारतीय सेना की तस्वीर आतंकवादियों के मन में बेहद अलग ढंग से बनाई गई है, जो बहुत गलत है। जैसे-जैसे उसकी जिंदगी पटरी पर आई, हमने उससे कुछ और बेहतर करवाने का सोचा। उस पर से आतंकवाद का मामला हटा लिया गया और उसे प्रशिक्षण देने का काम शुरू कर दिया गया। धीरे-धीरे वह भारतीय सेना में एक जवान के रूप में जुड़ गया।”
तब से वह सेना के एक हवलदार के रूप में अपनी सेवाएं दे रहा है। कुछ सालों में वह जूनियर अफसर के पद पर भी पहुंच जाएगा। उसने अब शादी भी कर ली है और किश्तवाड़ में ही एक अच्छा जीवन जी रहा है।


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